इस तरह वो मेरे ग़ुनाहों को धो देतीं थी,
मां बहुत ग़ुस्से में होती, तो रो देतीं थी’
‘ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जबतक घर ना लौटूं, मां सज़दे में होती थी’
लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती !
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